Holidays Cause

 

11- डॉ भीमराव अम्बेडकर जयंती

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अंबेडकर जयंती या भीम जयंती डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जिन्हें बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है, के जन्म दिन १४ अप्रैल को तौहार के रूप में भारत समेत पुरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन को 'समानता दिवस' और 'ज्ञान दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकी जीवन भर समानता के लिए संघर्ष करने वाले प्रतिभाशाली डॉ॰ भीमराव आंबेडकर को समानता के प्रतीक और ज्ञान के प्रतीक भी कहां जाता है। भीमराव विश्व भर में उनके मानवाधिकार आंदोलन, संविधान निर्माण और उनकी प्रकांड विद्वता के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति वैश्विक स्तर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर की पहली जयंती सदाशिव रणपिसे इन्होंने १४ अप्रेल १९२८ में पुणे शहर में मनाई थी। रणपिसे आंबेडकर के अनुयायी थे। उन्होंने आंबेडकर जयंती की प्रथा शुरू की और भीम जयंतीचे अवसरों पर बाबासाहेब की प्रतिमा हाथी के अंबारी में रखकर रथसे, उंट के उपर कई मिरवणुक निकाली थी।

भारत के लोगों के लिये उनके विशाल योगदान को याद करने के लिये बहुत ही खुशी से भारत के लोगों द्वारा अंबेडकर जयंती मनायी जाती है। डॉ भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के पिता थे जिन्होंने भारत के संविधान का ड्रॉफ्ट (प्रारुप) तैयार किया था। वो एक महान मानवाधिकार कार्यकर्ता थे जिनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। उन्होंने भारत के निम्न स्तरीय समूह के लोगों की आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के साथ ही शिक्षा की जरुरत के लक्ष्य को फैलाने के लिये भारत में वर्ष 1923 मेंबहिष्कृत हितकरनी सभाकी स्थापना की थी। इंसानों की समता के नियम के अनुसरण के द्वारा भारतीय समाज को पुनर्निर्माण के साथ ही भारत में जातिवाद को जड़ से हटाने के लक्ष्य के लियेशिक्षित करना-आंदोलन करना-संगठित करनाके नारे का इस्तेमाल कर लोगों के लिये वो एक सामाजिक आंदोलन चला रहे थे।
अस्पृश्य लोगों के लिये बराबरी के अधिकार की स्थापना के लिये महाराष्ट्र के महाड में वर्ष 1927 में उनके द्वारा एक मार्च का नेतृत्व किया गया था जिन्हेंसार्वजनिक चॉदर झीलके पानी का स्वाद या यहाँ तक की छूने की भी अनुमति नहीं थी। जाति विरोधी आंदोलन, पुजारी विरोधी आंदोलन और मंदिर में प्रवेश आंदोलन जैसे सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत करने के लिये भारतीय इतिहास में उन्हें चिन्हित किया जाता है। वास्तविक मानव अधिकार और राजनीतिक न्याय के लिये महाराष्ट्र के नासिक में वर्ष 1930 में उन्होंने मंदिर में प्रवेश के लिये आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने कहा कि दलित वर्ग के लोगों की सभी समस्याओं को सुलझाने के लिये राजनीतिक शक्ति ही एकमात्र तरीका नहीं है, उन्हें समाज में हर क्षेत्र में बराबर का अधिकार मिलना चाहिये। 1942 में वाइसराय की कार्यकारी परिषद की उनकी सदस्यता के दौरान निम्न वर्ग के लोगों के अधिकारों को बचाने के लिये कानूनी बदलाव बनाने में वो गहराई से शामिल थे।
भारतीय संविधान में राज्य नीति के मूल अधिकारों (सामाजिक आजादी के लिये, निम्न समूह के लोगों के लिये समानता और अस्पृश्यता का जड़ से उन्मूलन) और नीति निदेशक सिद्धांतों (संपत्ति के सही वितरण को सुनिश्चित करने के द्वारा जीवन निर्वाह के हालात में सुधार लाना) को सुरक्षा देने के द्वारा उन्होंने अपना बड़ा योगदान दिया। बुद्ध धर्म के द्वारा अपने जीवन के अंत तक उनकी सामाजिक क्रांति जारी रही।

12- महावीर जयंती 

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जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। जैन समुदाय के लिए महावीर जयंती का विशेष महत्त्व है इनका जन्म चैत्र  मास के शुक्ल ट्रायोशदी तिथि पर मनाया जाता है उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं था उन्हें। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में पैदा हुए महावीर और बुद्ध। दोनों ने इन चीजों के खिलाफ आवाज उठाई। दोनों ने अहिंसा का भरपूर विकास कियाभगवान महावीर के पिता का नाम महाराज सिद्धार्थ और माता का नाम महारानी त्रिशला था। महावीर बचपन से ही बड़े तेजस्वी और साहसी बालक थे।

13- Good Friday (बड़ा दिन)

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ईसाई धर्म गुड फ्राइडे का खास महत्व होता है क्योंकि इस दिन इसाई धर्म के प्रवर्त्तक प्रभु यीशु मसीह ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था. आज के दिन को ईसाई अनुयायी शोक दिवस के रूप में भी मनाते है. इस दिन ईसाई धर्म को मानने वाले चर्च जाकर प्रभु यीशु को याद करते हैं. गुड फ्राइडे को होली फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे और ग्रेट फ्राइडे भी कहते हैं. इस दिन गिरिजाघरों में जिस सूली (क्रॉस) पर प्रभु यीशु को चढ़ाया गया था, उसके प्रतीकात्मक रूप को सभी भक्तों के लिए गिरजाघरों में रखा जाता है. जिसे सभी अनुयायी एक-एक कर आकर चूमते हैं.

मानाने का तरीका
ईसाई मान्यताओं के अनुसार, आमतौर पर पवित्र गुरुवार की शाम के प्रभु भोज के बाद कोई उत्सव नहीं होता, जब तक कि ईस्टर की अवधि बीत जाए. इसके साथ ही इस दौरान पूजा स्थल पूरी तरह से खाली रहता है. वहां क्रॉस, मोमबत्ती या वस्त्र कुछ भी नहीं रहता है. ऐसे प्रथा के अनुसार, जल का आशीर्वाद पाने के लिए पवित्र जल संस्कार के पात्र खाली किए जाते हैं. इसके अलावा प्रार्थना के दौरान बाइबल और अन्य धर्म ग्रंथों का पाठ, क्रॉस की पूजा और प्रभु भोज में शामिल होने की प्रथा चली रही है.
कहा जाता है कि जिस दिन ईसा मसीह को क्रॉस पर लटकाया गया था उस दिन फ्राइडे यानी कि शुक्रवार था. तभी से उस दिन को गुड फ्राइडे कहा जाने लगा. क्रॉस पर लटकाए जाने के तीन दिन बाद यानी कि रविवार को ईसा मसीह फिर से जीवित हो उठे थे. इसी की खुशी में ईस्टर या ईस्टर रविवार मनाया जाता है. इस दिन को ईस्टर संडे कहा जाता है.

14- बुध पूर्णिमा

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बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह बैसाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। 

 भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नहीं हुआ है। अपने मानवतावादी एवं विज्ञानवादी बौद्ध धम्म दर्शन से भगवान बुद्ध दुनिया के सबसे महान महापुरुष कहे जाते है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में १८० करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।

 15- ईद उल फ़ित्र 

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 इस्लाम धर्म का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है मनाने का मक्सद ये है कि पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बंदे अल्लाह की इबादत करते हैं रोज़ा रखते हैं और क़ुआन करीम की तिलावत करके अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र या मजदूरी मिलने का दिन ही ईद का दिन कहलाता है जिसे उत्सव के रूप में पूरी दुनिया के मुसलमान बडे हर्ष उल्लास से मनाते हैं

सबसे अहम मक्सद एक और है कि इसमें ग़रीबों को फितरा देना वाजिब है जिससे वो लोग जो ग़रीब हैं मजबूर हैं अपनी ईद मना सकें नये कपडे पहन सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें फित्रा वाजिब है उनके ऊपर जो 52.50 तोला चाँदी या 7.50 तोला सोने का मालिक हो अपने और अपनी नाबालिग़ औलाद का सद्कये फित्र अदा करे जो कि ईद उल फितर की नमाज़ा से पहले करना होता है। ईद भाई चारे का आपसी मेल का तयौहार है इसमें एक दूसरे के दिल में प्यार बढाना और नफरत को मिटाना सबसे ज़रूरी है इसी लिए लोग ईद में गले मिलते हैं

16- ईद उल अज़हा (बकराईद)

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(अरबी में عید الاضحیٰ जिसका मतलब क़ुरबानी की ईद) इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग ७० दिनों बाद इसे मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उसके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है। इस शब्द का बकरों से कोई संबंध नहीं है। ही यह उर्दू का शब्द है। असल में अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जो जि़बह किया (काटा) जाता है। उसी से बिगड़कर आज भारत, पाकिस्तान बांग्ला देश में इसे 'बकरा ईद' बोलते हैं। ईद--कुर्बां का मतलब है बलिदान की भावना। अरबी में 'क़र्ब' नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं मतलब इस मौके पर अल्लाह् इंसान के बहुत करीब हो जाता है। कुर्बानी उस पशु के जि़बह करने को कहते हैं जिसे 10, 11, 12 या 13 जि़लहिज्ज (हज का महीना) को खुदा को खुश करने के लिए ज़िबिह किया जाता है। 

17- स्वतंत्रता दिवस

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भारत का स्वतंत्रता दिवस हर वर्ष 15 अगस् को देश भर में हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है यह प्रत्येक भारतीय को एक नई शुरूआत की याद दिलाता है। इस दिन 200 वर्ष से अधिक समय तक ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से छूट कर एक नए युग की शुरूआत हुई थी। 15 अगस् 1947 वह भाग्यशाली दिन था जब भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से स्वतंत्र घोषित किया गया और नियंत्रण की बागडोर देश के नेताओं को सौंप दी गई। भारत द्वारा आजादी पाना उसका भाग् था, क्योंकि स्वतंत्रता संघर्ष काफी लम्बे समय चला और यह एक थका देने वाला अनुभव था, जिसमें अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन कुर्बान कर दिए।

17- रक्षा बंधन

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रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है।रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन बाजार मे कई सारे उपहार बिकते है, उपहार और नए कपड़े खरीदने के लिए बाज़ार मे लोगों की सुबह से शाम तक भीड होती है। घर मे मेहमानों का आना जाना रहता है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहन को राखी के बदले कुछ उपहार देते है। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो भाई बहन के प्यार को और मजबूत बनाता है, इस त्योहार के दिन सभी परिवार एक हो जाते है और राखी, उपहार और मिठाई देकर अपना प्यार साझा करते है। 

18-  श्री कृष्ण जन्माष्टमी

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यह त्यौहार भगवान कृष्ण के जन्म लेने की ख़ुशी में मनाया जाता है. पुराणों की मानें तो कहा जाता है की कृष्ण भगवान ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अवतार लिया था. इसके बाद से ही इस दिन को लोग कृष्ण जन्माष्टमी के तौर पर मानाने लगे. कृष्ण भगवान और राधा को प्रेम का प्रतीक माना जाता है. इस त्यौहार को देश-विदेश के लोग बहुत ही धूम-धाम और पूरी आस्था के साथ मनाते हैं

मामा कंस के अत्याचारों से परेशान होकर, उनके विनाश के लिए, भगवान कृष्ण ने भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्म लिया था. कृष्ण भगवान का जन्म मथुरा में आधी रात को हुआ था. मथुरा भगवान की जन्म-भूमि है, इसलिए इस त्यौहार को मथुरा में बहुत ही ज़्यादा धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. दूर-दूर से लोग मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी का पर्व देखने के लिए आते हैं. पूरे मथुरा के मंदिरों को दुल्हन की तरह सजा दिया जाता है, जिसकी वजह से हर तरफ रौशनी हो रौशनी दिखाई देती है. इतना ही नहीं, यहां के मंदिरों में कृष्ण भगवान को आप गोपियों संग रासलीला का आनंद लेते हुए भी देख सकते है. शास्त्रों के मुताबिक 5 हज़ार 243 साल पहले भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा की भूमि पर हुआ था

19-  दस मुहर्रम

आपको यह जानकर हैरानी होगी की यह एक अकेला ऐसा अवकाश है जिसकी पुरे विश्व में छुट्टी होती हे, इसी बात से आप इसकी फ़ज़ीलत का अंदाज़ा लगा सकते है इस अवकाश के कारण इतने अधिक है की मेरे (जुनैद ज़ैदी) पास स्पेस पर्याप्त नहीं है लेकिन फिर भी कुछ बिंदु मई यहाँ खोल रहा हु जो निम्न है 

अलबत्ता यह जरूर कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह के नबी हजरत नूह (.) की किश्ती को किनारा मिला था। इसके साथ ही आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मदصلی اللہ علیہ و آلہ و سلم] के नवासे हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था। कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी विभत्स और निंदनीय है।

मुहर्रम महीने के १०वें दिन को 'आशुरा' कहते है। आशुरा के दिन हजरत रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन को और उनके बेटे घरवाले और उनके सथियों (परिवार वालो) को करबला के मैदान में शहीद कर दिया गया था।

मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। इस माह की बहुत विशेषता और महत्व है। सन् 680 में इसी माह में कर्बला नामक स्थान मे एक धर्म युद्ध हुआ था, जो पैगम्बर हजरत मुहम्म्द स० के नाती तथा इब्न ज़्याद के बीच हुआ। इस धर्म युद्ध में वास्तविक जीत हज़रत इमाम हुसैन अ० की हुई। जाहिरी तौर पर इब्न ज़्याद के कमांडर शिम्र ने हज़रत हुसैन रज़ी० और उनके सभी 72 साथियो (परिवार वालो) को शहीद कर दिया था। जिसमें उनके छः महीने की उम्र के पुत्र हज़रत अली असग़र भी शामिल थे। और तभी से तमाम दुनिया के ना सिर्फ़ मुसलमान बल्कि दूसरी क़ौमों के लोग भी इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का ग़म मनाकर उनकी याद करते हैं। आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था।
कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी विभत्स और निंदनीय है। बुजुर्ग कहते हैं कि इसे याद करते हुए भी हमें हजरत [मुहम्मदصلی اللہ علیہ و آلہ و سلم] का तरीका अपनाना चाहिए। जबकि आज आमजन को दीन की जानकारी के बराबर है। अल्लाह के रसूल वाले तरीकों से लोग वाकिफ नहीं हैं। ऐसे में जरूरत है हजरत [मुहम्मदصلی اللہ علیہ و آلہ و سلم] की बताई बातों पर गौर करने और उन पर सही ढंग से अमल करने की जरुरत है।
इमाम और उनकी शहादत के बाद सिर्फ उनके एक पुत्र हजरत इमाम जै़नुलआबेदीन, जो कि बीमारी के कारण युद्ध मे भाग ले सके थे बचे | दुनिया मे अपने बच्चों का नाम हज़रत हुसैन और उनके शहीद साथियों के नाम पर रखने वाले अरबो मुसलमान हैं। इमाम हुसेन की औलादे जो सादात कहलाती हैं दुनियाभर में फैली हुयी हैं। जो इमाम जेनुलाबेदीन अ० से चली।

20- महात्मा गाँधी जन्म दिवस

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                                   मोहनदास करमचन्द गांधी ( अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८
गांधी जयंती हर साल 2 अक्टूबर को मनाई जाती है. 2 अक्टूबर के दिन गांधी जी का जन्म हुआ था.  इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. गांधी जी विश्व भर में उनके अहिंसात्मक आंदोलन के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति वैश्विक स्तर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है. गांधी जी कहते थे कि अहिंसा एक दर्शन है, एक सिद्धांत है और एक अनुभव है जिसके आधार पर समाज का बेहतर निर्माण करना संभव है.गांधी जयंती के दिन लोग राजघाट नई दिल्ली में गांधी प्रतिमा के सामने श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है. महात्मा गांधी की समाधि पर राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री की उपस्थिति में प्रार्थना आयोजित की जाती है. सभी स्कूलों और दफ्तरों में गांधी जयंती का उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.  
 
महात्मा गांधी से जुड़ी 5 रोचक बातें

1. महात्मा गांधी लंदन में कानून की पढ़ाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये गए थे. उन्होंने लंदन में पढ़ाई कर बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की थी, लेकिन बंबई उच्च न्यायालय में हुई पहली बहस में वे असफल रहे थे.2. दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनियों में से एक एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स गांधी जी को सम्मान देने के लिए गोल चश्मा पहनते थे.

3. भारत में छोटी सड़कों को छोड़कर महात्मा गांधी के नाम पर 50 से ज्यादा सड़के हैं. साथ ही गांधी जी के नाम पर विदेशों में करीब 60 सड़के हैं.

4. महात्मा गांधी को 5 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था, लेकिन उन्हें एक बार भी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला.

5. बापू रोज 18 किलोमीटर पैदल चलते थे

21- दशहरा

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दशहेरा इसलिए मनाया जाता है कि भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। वहीं, विजयादशमी पर देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है। दशहरा त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के खत्म होने बाद दशमी तिथि पर यह पर्व पूरे देश में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। दशहरे के दिन लोग अस्त्र शस्त्र की भी पूजा करते हैं और इसी के साथ दीवापली की तैयारी शुरू हो जाती है। 

क्यों मनाया जाता है दशहरा 
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान 14 वर्षों के वनवास में थे तो लंकापति रावण ने उनकी पत्नी माता सीता का अपहरण कर उन्हें लंका की अशोक वाटिका में बंदी बना कर रखा लिया था। श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान और वानर सेना के साथ रावण की सेना से लंका में ही पूरे नौ दिनों तक युद्ध लड़ा। मान्यता है कि उस समय प्रभु राम ने देवी माँ की उपासना की थी और उनके आशीर्वाद से आश्विन मास की दशमी तिथि पर अहंकारी रावण का वध किया था।
क्यों मनाया जाता है विजयादशमी
एक दूसरी कथा के अनुसार असुरों के राजा महिषासुर ने अपनी शक्ति के बल पर देवताओं को पराजित कर इन्द्रलोक सहित पृथ्वी पर अपना अधिकार कर लिया था। भगवान ब्रह्रा के दिए वरदान के कारण किसी भी कोई भी देवता उसका वध नहीं कर सकते थे। ऐसे में त्रिदेवों सहित सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों से देवी दुर्गा की उत्पत्ति की। इसके बाद देवी ने महिषासुर के आंतक से सभी को मुक्त करवाया। मां की इस विजय को ही विजय दशमी के नाम से मनाया जाता है।

24- महर्षि बाल्मीकि जयंती 

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इनके जन्म के बारे में बहुत सरे अपवाद है कोई निश्चित तिथि ज्ञात नहीं है परन्तु फिर भी किवदंती के अनुसार आपका जन्म अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है आप रामायण के रचियता है रामायण एक महाकाव्य है जो कि राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है।आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता' वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये। 

25- चेहलुम

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मैदाने कर्बला में शहीद हुए इमाम हुसैन उनके 71 अनुयायियों की शहादत के चालीस दिन बाद चेहल्लुम मनाया जाता है. इमाम हुसैन मोहर्रम की दसवीं पर शहीद हुए थे. चालीसवें पर हम सोमवार को उनके और उनके साथियों की शहादत को एक बार फिर याद किया करते है एक तरह से कहा जाये तो ये इमाम हुसैन र० का चालीसवां है चेहलुम पर अमरोहा में ग़म का माहौल रहता हे और अज़ादार मोहल्ला हक़्क़ानी से लेकर नौबत खाने तक चुरियो का मातम करते है सभी सम्प्रदाय के लोग ग़म के इस माहौल में अज़ादारो का साथ देते है और बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से ये जलूस निकला जाता है

26- नरक चतुर्दशी

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यह त्यौहार नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले, रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है।

  27- दीपावली

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सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार दिवाली के दिन ही श्री राम जी वनवास से अयोध्या लौटे थे। मान्यता है अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई थी। मंथरा की गलत विचारों से भ्रमित होकर भरत की माता कैकई ने श्री राम को उनके पिता दशरथ से वनवास भेजने के लिए वचनबद्ध कर देती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने पिता के आदेश को मानते हुए अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास पर निकल गए। अपनी 14 वर्ष की वनवास पूरा करने के बाद श्री राम जी दिवाली के दिन अयोध्या वापस लौटे थे। राम जी के वापस आने की खुशी में पूरे राज्य के लोग रात में दीप जलाए थे और खुशियां मनाए थे। उसी समय से दिवाली मनाई जाती है।

28- गोवर्धन पूजा

श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते पूजा करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। 

लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इन*#का कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।

इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।
इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।

  29- भैया दूज 

इस पर्व को लेकर कई सारी पौराणिक तथा ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित है। लेकिन भाई दूज के पर्व को लेकर जो कहानी सबसे अधिक प्रचलित है उसके अनुसारमृत्युलोक के स्वामी यमराज की बहन यमुना अपने भाई से बहुत स्नेह करती थी।
वह सदैव उनसे अपने घर आने का निवेदन करती थी लेकिन अपने कार्यों में व्यस्त होने के कारण यमराज अपने बहन के घर नही जा पाते थे। लेकिन एक बार कार्तिक शुक्ल के दिन यमुना ने एक बार फिर अपने भाई को घर आने के लिए निमंत्रित कर वचनबद्ध कर लिया। अपने बहन की बात मान कर वह उनके घर जाने के लिए राजी हो गये और यमुना के घर जाने से पहले उन्होंने नर्क में आने वाले सभी जीवों को मुक्त कर दिया।
इसके बाद वह अपने बहन के घर पहूँचे, उस दिन उनकी बहन यमुना अपने भाई को टिका चंदन लगाकर उनकी आरती उतारी और इसके साथ ही कई प्रकार के पकवान बनाकर अपने भाई खिलाया और उनकी खूब आवाभगत की यमराज अपनी बहन के इस प्रेमभक्ति को देखकर काफी प्रसन्न हुए और अपनी बहन से कोई वरदान मांगने को कहा।
तब उनकी बहन ने कहा हे भद्र आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो और इस दिन जो भी बहन अपने भाई का आदर सत्कार करे, उसे कभी भी आपका भय ना रहे। उनकी इस बात को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तब से इसी कारणवश लोग हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाते हैं।

29- चित्र गुप्त जयंती  

यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है। कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त। यही भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं। 

30- सरदार बल्लभ भाई पटेल जयंती 

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सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। सरदार पटेल एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आजार भारत के पहले गृहमंत्री थे। स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका महत्वपूर्ण योगदान था, जिसके कारण उन्हें भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है।31 अक्टूबर 1875 गुजरात के नाडियाद में सरदार पटेल का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उन के पिता का नाम झवेरभाई और माता का नाम लाडबा देवी था। सरदार पटेल अपने तीन भाई बहनों में सबसे छोटे और चौथे नंबर पर थे।
31- छठ पूजा 

 महाभारत काल से हुई थी छठ की शुरुआत 
ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें उल्लेख है कि छठ के त्योहार की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। कर्ण सूर्यपुत्र कहलाए जाते हैं। वह प्रतिदिन घंटों नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे जिसकी वजह से वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की परंपरा प्रचलित है।

द्रोपदी में भी रखा था छठ व्रत
छठ पर्व से जुड़ी एक और कहानी प्रचलित है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ हार गए तब द्रोपदी ने छठ व्रत रख कर पांडवों को उनका सारा राजपाठ वापस दिलवा दिया।
छठ का पौराणिक महत्व
छठ की कथाओं में एक और कथा प्रचलित है। कहा जाता है प्रियव्रत नाम का एक राजा था जिसकी कोई संतान नहीं थी। फिर उस राजा को महर्षि कश्यप ने पुत्रयेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। सफलता पूर्वक यज्ञ करने के बाद उसे एक पुत्र प्राप् हुआ लेकिन वह भी मरा हुआ पैदा हुआ। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा और उसमें बैठी देवी ने कहा, मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं। इतना बोल कर देवी ने उस मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से राजा ने इस त्योहार की परंपरा अपने राज् में घोषित कर दी।

32- ईद मिलादुन्नबी (बारहवफात)

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 ईद--मिलाद के रूप में जाना जाने वाला, मिलाद-उन-नबी पैगम्बर मुहम्मद के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह उत्सव मुहम्मद के जीवन और उनकी शिक्षाओं की भी याद दिलाता है। मिलाद-उन-नबी इस्लामी पंचांग के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन मनाया जाता है। हालाँकि मुहम्मद का जन्मदिन एक खुशहाल अवसर है, लेकिन मिलाद-उन-नबी शोक का भी दिन है। यह इस वजह से क्योंकि रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन ही पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु भी हुई थी।मिलाद-उन-नबी इस्लाम के प्रमुख पैगम्बर मुहम्मद का जन्मोत्सव है। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, मुहम्मद का जन्म सन् 570 में सऊदी अरब में हुआ था। इस्लाम के ज्यादातर विद्वानों ने पता लगाया है कि मुहम्मद का जन्म इस्लामी पंचांग के तीसरे महीने के 12वें दिन हुआ है। अपने जीवनकाल के दौरान, मुहम्मद ने इस्लाम धर्म की स्थापना की और एकमात्र साम्राज्य के रूप में सऊदी अरब का निर्माण किया जो अल्लाह की इबादत के लिए समर्पित था। 

33- कार्तिक पूर्णिमा

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पुराणों के अनुसार इस माह में भगवन विष्णु नारायण रूप में जल में निवास करते है इस दिन को ब्रहम्मा विष्णु, शिव, अंगिरा और दित्य जैसे देवताओ का दिन मआना जाता है कार्तिक पूर्णिमा देवी-देवताओं के लिए खासतौर पर उत्सव का दिवस हैयह उल्लेख मिलता है कि इस दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो यह महाकार्तिकी होती है, भरणी होने से विशेष फल देती है। लेकिन रोहिणी होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे महापुनीत पर्व की संज्ञा दी है। इसीलिए इसमें किये हुए गंगा स्नान, दीप दान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्व है।

एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़ चेतन, जीव तथा देवता भयभीत हो गये। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, पर उन्हें सफलता मिल सकी। आखिर ब्रह्माजी स्वयं उसके सामने प्रस्तुत हुए और वर मांगने का आदेश दिया। त्रिपुर ने वर में मांगा, '' देवताओं के हाथों मरूं, मनुष्य के हाथों।''

इस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं, उसने कैलाश पर भी चढ़ाई कर दी। परिणामतः महादेव तथा त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिवजी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया। तभी से इस दिन का महत्व बहुत बढ़ गया।

इस दिन क्षीर सागर दान का अनन्त माहात्म्य है। क्षीर सागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल मनाया जाता है।

 

सलिए कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक नियम .. 

 

34- गुरु नानक जयंती

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गुरु नानक साहिब जो सिक्ख समाज के संस्थापक कहलाते हैं . उनके जन्म दिवस को गुरु नानक जयंती के रूप में प्रति वर्ष सिक्ख समाज बड़े उत्साह से मनाता हैं . यह जयंती कार्तिक मास की पूर्णिमा को बड़े उत्साह से पुरे देश में मनाई जाती हैं .इस दिन प्रभात फेरी निकाली जाती हैं . ढोल ढमाकों के साथ पूरा सिक्ख समाज इसे मनाता हैं . जश्न कई दिनों पहले से शुरू हो जाते हैं कीर्तन होते हैं, लंगर किये जाते हैं . गरीबों के लिए दान दिया जाता हैं . सबसे महत्वपूर्ण यह जयंती घर में एक परिवार के साथ नहीं पुरे समाज एवम शहर के साथ हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं 

35- चौधरी चरण सिंह जयंती

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 चौधरी चरण सिंह भारत के पांचवे प्रधानमंत्री थे। हालांकि उनका कार्यकाल ज्यादा दिनों का नहीं था। वह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहे थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में अमरोहा के निकट हापुड़ जिले में 23 दिसंबर 1902 को हुआ था। अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने किसानों की दशा सुधारने के लिए कई नीतियां बनाईं।किसानों के प्रति उनका प्रेम इसलिए भी था क्योंकि चौधरी चरण सिंह खुद एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे और वह उनकी समस्याओं को अच्छी तरह से समझते थे। राजनेता होने के साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री एक अच्छे लेखक भी थे।

36- गुरु तेग बहादुर शहीद दिवस

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आज के दिन गुरु तेग बहादुर जो की सिख्खो के नोवे गुरु थे शहीद  हुए थे  इस लिए गुरु तेग बहादुर शहीद दिवस मनाया जाता हैआप २४ नवंबर 1675 को शहीद हुए थे जो की सर्वे मन्य हे कुछ इतिहासकार इसे 11 नवंबर मानते है

36- क्रिसमस

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क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। यह 25 दिसम्बर को पड़ता है और इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व मे अवकाश रहता है।ईसाइयों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार क्रिसमस विश्व भर में 25 दिसम्बर को खूब हर्षोल्लास से मनाया जाता है। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर से ही क्रिसमस से जुड़े कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं। यूरोपीय और पश्चिमी देशों में इस दौरान खूब रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारत में गोवा राज्य में क्रिसमस की काफी धूम रहती है इसके अलावा विभिन्न शहरों की बड़ी चर्चों में भी इस दिन सभी धर्मों के लोग एकत्रित होकर प्रभु यीशु का ध्यान करते हैं। क्रिसमस की पूर्व संध्या पर लोग प्रभु की प्रशंसा में कैरोल गाते हैं और क्रिसमस के दिन प्यार भाईचारे का संदेश देने एक दूसरे के घर जाते हैं।

 

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